यूँ तो बेखबर से रहते हो तपिश से हमारी।
फिर भी क्यूँ सुलगते हो तपिश से हमारी ?
यूं तो कहते हो की मुहोब्बत नहीं है तुझસે,
तो क्यूँ बाँवरे से घुमते हो तपिश से हमारी ?
-शर्मिष्ठा”शब्दकलरव”.

यूँ तो बेखबर से रहते हो तपिश से हमारी।
फिर भी क्यूँ सुलगते हो तपिश से हमारी ?
यूं तो कहते हो की मुहोब्बत नहीं है तुझસે,
तो क्यूँ बाँवरे से घुमते हो तपिश से हमारी ?
-शर्मिष्ठा”शब्दकलरव”.