नैनों की झिल में
कुछ द्रष्य पनपते
देखें थे मैंने
बहुत खुश होकर
उसी से कुछ
ख्वाब भी जने थे मैने।
आज सालों बाद
लगता है..
अच्छा होता गर…
ना द्रष्य पनपते,
ना ख्वाब जनते,
ना ही दिल तडपता
ओर ना ही;
लहूँ की स्याही में
यह शब्द पनपते ।
-“शर्मिष्ठा।

नैनों की झिल में
कुछ द्रष्य पनपते
देखें थे मैंने
बहुत खुश होकर
उसी से कुछ
ख्वाब भी जने थे मैने।
आज सालों बाद
लगता है..
अच्छा होता गर…
ना द्रष्य पनपते,
ना ख्वाब जनते,
ना ही दिल तडपता
ओर ना ही;
लहूँ की स्याही में
यह शब्द पनपते ।
-“शर्मिष्ठा।